बाल श्रम पर दूसरा बिहार डायलॉग

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शराबबंदी कानून की तरह सख्‍ती से लागू करे सरकार बाल श्रम कानून को – प्रो पुष्‍पेंद्र

बिहार में बाल श्रम पर एक सार्थक संवाद

गया में 27 मई, 2018 को  एक्शन मीडिया के द्वारा सेंटर डायरेक्‍ट के सहयोग से बिहार डायलॉग का आयोजन किया गया. बिहार डायलॉग का यह दूसरा आयोजन बिहार में बाल श्रम पर केंद्रित था। गया में इस आयोजन का मुख्‍य उददेश्‍य यह भी था कि बिहार में गया जिले में बाल श्रम के सबसे मामले पाए गए हैं।

Dr Pushpendra addressing In BD 2

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए टाटा इंस्‍टिटयूट ऑफ सोशल साइंस, पटना के सेंटर हेड प्रो पुष्‍पेंद्र ने कहा कि हम एक दोहरी जिदंगी जी रहे हैं हम अपने बच्‍चों के लिए एक अलग स्‍तर रखते हैं जबकि दूसरों के लिए दूसरा। बाल श्रम को खत्‍म करना अब सिर्फ नैतिक नहीं कानूनी दायित्‍व है। बाल श्रमिक कितने तरह के है ? कुछ लोग का मानना है जो बच्चे स्कूल में नहीं है वो सभी बाल श्रमिक है। लेकिन इसमें 2 तरह के है । एक जो इंडस्ट्रीज में काम करते है वेज के लिए, एक वो बच्चे जो काम करते है जो घर मे काम करते है अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाना है । इंडस्ट्री में ट्रैफिक किये गए है, चाइल्‍ड लेबर है, वेज लेबर है , माइग्रेंट लेबर है। सरकार का पूरा ध्यान आमतौर पर माइग्रेट लेबर या इंडस्ट्री लेबर पर ही केंद्रित है लेकिन ये बहुत छोटा हिस्सा है। बाल श्रमिक का क्षेत्र काफी व्‍यापक है। अगर कोई बच्चा काम पर लगाया जा रहा है तो इसका मतलब एक वयस्क की नौकरी जा रही है। हमने वयस्क में बेरोजगारी बढ़ाई और आने वाले समय में बच्चे को शिक्षित नहीं होते बस प्रशिक्षत होंगे।

कानून में बदलाव के बारे में बताते हुए बताते हुए उन्‍होनें कहा कि श्रम में बाल भी होता है। कानून कहता है 14 साल के छोटे बच्चे से जोखिम का काम नहीं करना चाहिए। 14 साल से ऊपर के बच्चे जोखिम के काम कर सकते है। उसके लिए कई काम को जोखिम के कैटेरिया से निकाल दिया गया। कानूनी हिसाब से हम पीछे की ओर जा रहे है। इसके लिए एक ऐसे कानून की आश्‍वयकता है जिसमें लूप होल न हो।

शराबबंदी कानून का उदाहरण देते हुए  प्रो पुष्‍पेंद्र ने कहा कि सरकार की प्राथिमकता में भी बाल श्रम को समाप्‍त करना नहीं हैं । शराबबंदी कानून इसका उदाहरण हैं जहां रातों रात सरकार ने इस कानून को सख्‍ती से लागू किया। ऐसा बाल श्रम और बच्‍चों के सुरक्षा से जुडे कानूनों के साथ क्‍यों नहीं हो सकता ।

अगर कोई बच्चा काम पर लगाया जा रहा है तो इसका मतलब एक वयस्क की नौकरी जा रही है। हमने वयस्क में बेरोजगारी बढ़ाई  है। हमे यह सुनिशिचत करना होगा कि एडल्ट एम्पोयमेंट में इतना पैसा मिले कि वो अपने बच्चे को आराम से पढ़ा सके। मूल सवाल वयस्कों के श्रम का है।

प्रसिद्ध समाजसेवी सिस्‍टर मैरी एलिस ने कहा कि बच्‍चों को सुरक्षित करना सरकार,  मां-बाप  और समाज सबकी जिम्‍मेवारी हैं। यह एक मिथ है कि गरीब लोग अपने बच्चों के हितों का ख्याल नहीं रखते है। सभी को बच्‍चे उतने ही प्‍यारे होते हैं। कानून तो बहुत बनते है । इस कानून को लागू करवाने के लिए क्या सरकार बाध्य है या जिसपे ये जुल्म हो रहा है उसकी भी जिम्‍मेवारी है। क्या हमलोग थोड़ा भी दर्द और अनुभव के साथ ये सोचकर कि जो बच्चा काम कर रहा है वो हमारे ही बच्चा है ये सोचने से धारणा बदल जाती है। हमने ये कभी नहीं सोचा जो बच्चा काम करता है वो हमारे लिए करता है। हमें सबसे पहले इसके लिए सामाजिक बदलाव करना होगा उसके बिना इसे व्यवहार में लाना कठिन होगा। इस बदलाव में मीडिया का भी काफी बड़ा हाथ हो सकता है। मीडिया,जनता और सामाजिक संगठन मिलकर काम करेंगे तब ही इसे जड़ से खत्म कर सकते है। अभी मानव तस्करी बिल पास होने वाला है उसे हमलोग कितना नैतिक समर्थन देते है। ये बाल श्रम से बच्चों को मुक्त करना एनजीओ का या सरकार का काम नहीं है ये एक सामाजिक काम है और इसे सबको मिलकर करना होगा।

कार्यक्रम का संचालन एक्‍शन मीडिया से व्‍यालोक ने किया। सेंटर डायरेक्‍ट के महा सचिव पी के शर्मा ने सभी श्रोताओं और अतिथियों का आभार व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि यह हमारे लिए बुहत ही गौरव का दिन है। इस अवसर पर गया के समाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, सेटर डायरेक्‍ट के प्रतिनिधियों, के साथ ही गा जिले से कुछ बाल श्रम से विमुक्‍त करवाए गए बच्‍चों के साथ ही उनके माता-पिता भी मौजूद रहे।

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