बाल अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु व्यक्तिगत, सामाजिक एवं नीति-निर्माण स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत

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पटना, 11 मार्च: यूनिसेफ बिहार की राज्य प्रमुख, नफीसा बिन्ते शफ़ीक़ ने चाइल्ड राइट्स सेंटर, सीएनएलयू और यूनिसेफ बिहार द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम “एडवोकेसी टू एक्शन – सीएसओ यूनाइट फॉर चाइल्ड राइट्स” में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि बिहार के लगभग 5 करोड़ बच्चे (राज्य की कुल आबादी का 46% हिस्सा हैं) के लिए बेहतर माहौल बनाना सभी प्रमुख हितधारकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। विकास की दौड़ में कोई बच्चा पीछे न रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संगठनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे पास सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक दशक से भी कम समय है। अगर हम चूक गए तो आने वाली पीढ़ी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। हालांकि NFHS-5 के आंकड़ों पर नज़र डालें, बिहार ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन 18 साल की उम्र से पहले 40% से अधिक लड़कियों की शादी अभी भी एक बड़ी चिंता है। हम सबको मिलकर काम करने की ज़रूरत है और चेंज मकर की भूमिका निभानी है।

चाणक्य होटल में आयोजित कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत पूर्व जस्टिस मृदुला मिश्रा, कुलपति, चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, पटना और नफीसा बिन्ते शफीक, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ बिहार द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुई. इस दौरान मनोरंजन प्रसाद श्रीवास्तव, रजिस्ट्रार, सीएनएलयू, प्रज्ञा वत्स, सेव द चिल्ड्रन और प्रसन्ना ऐश, यूनिसेफ बिहार मौजूद रहे। इस कार्यक्रम में राज्य भर के 60 से अधिक सीएसओ ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान बिहार यूथ फ़ॉर चाइल्ड राइट्स के युवा सदस्य, सेव द चिल्ड्रेन के प्रतिनिधि और मीडियाकर्मी भी मौजूद रहे।

चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की कुलपति जस्टिस मृदुला मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा कि “बच्चे खुद की वकालत नहीं कर सकते। उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं होता है। वे नहीं जानते कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है और जीवन में कब, क्या फैसला लिया जाए। जो भी बच्चा इस दुनिया में आता है उसके पास कुछ मानव अधिकार, जैसे जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, शिक्षा का अधिकार आदि होते हैं। जब तब बच्चे अपने अधिकारों को समझने लायक ना बन जाए तब तक समाज के शिक्षित व्यक्तियों पर बच्चे के अधिकारों की रक्षा का दायित्व होता है। इसमें सिविल सोसाइटी संस्थानों की भूमिका बहुत अहम है। सभी हितधारकों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि बच्चों के हक़ में नीतियों का निर्माण हो और सही तरीके से इनका अनुपालन हो”।

यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने सामाजिक परिवर्तन के लिए एडवोकेसी की भूमिका पर अपनी बात रखते हुए कहा कि एडवोकेसी का उद्देश्य केवल मुद्दों को उठाना नहीं बल्कि व्यक्तिगत, समाज और नीति निर्माण के स्तर पर परिवर्तन लाना होता है। किसी भी अभियान की सफलता जनता के समर्थन पर निर्भर करती है। बिहार में पिछले कुछ वर्षों में बच्चों के लिए कई प्रगतिशील नीतियों और कानूनों का निर्माण हुआ है और उनका कार्यान्वयन हो रहा है। उन्होंने उदहारण के तौर पर यूनिसेफ के बाल श्रम के ख़िलाफ़ चलाए गए अभियान ‘रोकेंगे, टोकेंगे और बदलेंगे’ का विशेष तौर पर जिक्र किया। आगे उन्होंने कहा कि एडवोकेसी में मीडिया और सिविल सोसाइटी संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ये दोनों जमीनी स्तर बच्चों से जुड़े होते हैं। बच्चों के लिए नीति निर्माण में उनकी प्रतिक्रियाओं और विचारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। उनकी भागीदारी के बिना, हम लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकते।

सीआरसी की सेंटर कोऑर्डिनेटर, शाहीना अहलुवालिया ने बाल अधिकारों के लिए एकजुट प्रयासों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एक टहनी को तोड़ना आसान है, लेकिन टहनियों के गट्ठर को तोड़ना संभव नहीं है। इसलिए, सभी सामाजिक संगठनों को बाल अधिकारों की वकालत के लिए एक साथ आना बेहद ज़रूरी है।

सेव द चिल्ड्रन की कैंपेन प्रमुख, प्रज्ञा वत्स ने कहा कि बच्चों की भागीदारी के बिना देश के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक बच्चा अपने अधिकारों को जाने और इसका उपयोग करें. बच्चे के अधिकारों की रक्षा के लिए एकीकृत आवाज़ की आवश्यकता है। उन्होंने एडवोकेसी अभियान की सफलता के लिए सोशल मीडिया की प्रासंगिकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि हमारी संस्था ने मशहूर रिटेल मार्केटिंग चैन स्नैपडील के साथ मिलकर जुलाई 2020 में #KidsNotForSale अभियान चलाया था जिससे बच्चों की तस्करी को लेगर जागरूकता फ़ैलाने में काफी मदद मिली. हम सभी को सामूहिक रूप से सोचना होगा कि क्या हम बाल अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में पर्याप्त कार्य कर रहे हैं और यदि नहीं, तो आगे क्या किया जा सकता है। हमें एक ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करना चाहिए जिसमें समाज को सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ जैसे संगठनों की आवश्यकता न हो, जहां बच्चों के लिए वकालत की आवश्यकता न हो।
यूनिसेफ बिहार के योजना निगरानी एवं मूल्यांकन विशेषज्ञ, प्रसन्ना ऐश ने कहा कि हम सभी एक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं। नीति और नियमों में किसी भी प्रकार के बदलाव के लिए जरूरतों को समझना महत्वपूर्ण है. उन्होंने एडवोकेसी के संदर्भ में डाटा और डाटा के सही इंटरप्रीटेशन पर बल दिया। साथ ही, उनके द्वारा सही सूचनाओं के लिए विश्वस्त स्रोत से ही आंकड़े लेने पर ज़ोर देते हुए कहा कि एनएफ़एचएस, यू-डाइस, नीति आयोग वेबसाइट, सेन्सस आदि से सूचनाएं एकत्रित करने के बारे में विस्तार से बताया। जब तक हम नीति बनाने के स्तर पर कदम नहीं उठाते, तब तक बदलाव नहीं लाया जा सकता।

टीचर्स ऑफ़ बिहार (टीओबी) के संस्थापक, शिव कुमार ने टीओबी, एससीईआरटी, बीईपीसी और यूनिसेफ के सहयोगी प्रयासों के माध्यम से लाये गए बदलावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम बिहार में शिक्षकों की एक सकारात्मक छवि बनाने में सक्षम हुए हैं। 2018-19 में पहली बार बिहार के 4 शिक्षक आईसीटी पुरस्कारों के लिए नामांकित हुए। वर्तमान में 70 हजार से अधिक शिक्षक टीओबी का हिस्सा हैं, जो विभिन्न अभिनव पहलों के माध्यम से शिक्षकों की छवि को पुनर्रस्थापित करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।

कार्यक्रम के अंत में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें प्रतिभागियों को चार 4 समूहों में विभाजित कर चार अलग-अलग विषयों – बिहार में बाल कुपोषण में कमी, बाल श्रम का खात्मा, समावेशी शिक्षा एवं बच्चों के खिलाफ़ अपराध पर एडवोकेसी योजना तैयार करने का कार्य दिया गया। सीआरसी की प्रीति आनंद ने इस सत्र का संचालन किया।

सीआरसी की सेंटर कोऑर्डिनेटर, शाहीना अहलुवालिया ने इस ऑनलाइन कार्यक्रम को मॉडरेट किया तथा सीआरसी के चंदन कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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