भारतीय गणतंत्र और उसका संविधान

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भारतीय गणतंत्र और उसका संविधान

संविधान क्या होता है, इसे किसी बच्चे को समझाएं तो शायद हम कहेंगे ये किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है। सभी नीतियां, राजनैतिक चर्चाएँ सब इसके दायरे में की जाती हैं। देश के नागरिक या नागरिकों की चुनी हुई सरकार, कोई भी संविधान से बाहर नहीं जा सकता। दुनियां के जो सबसे लम्बे लिखित संविधान हैं, उनमें भारत का संविधान शायद प्रथम आये। कई दुसरे देशों में लागू संविधानों से कोई कोई हिस्सा लेकर, उन्हें आपस में मिलाया गया, और इस तरह भारत का संविधान बना। इतने पर भी ये सम्पूर्ण या अंतिम नहीं था, इसके लागू होने से अब तक के सात दशकों में इसपर सौ से ज्यादा संशोधन भी करने पड़े हैं।

ये बना कैसे था ?

संविधान लागू जरूर 1950 में हुआ, लेकिन भारत के संविधान के बनने की प्रक्रिया 1934 में ही शुरू हो चुकी थी। भारत का अपना संविधान हो ये बात सबसे पहले कम्युनिस्ट नेता एम.एन.रॉय ने उठाई थी। बाद में कांग्रेस ने भी इसे सहमती दी और आखिरकार 1940 में ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने ये मांग मान ली। भारतीय लोगों को अपना संविधान बनने की इजाजत “अगस्त ऑफर” से मिली। इसके कुछ और साल बाद 1946 में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए जिसमें कुचल 296 सीटों के लिए मतदान हुआ और प्रतिनिधि चुने गए।

कांग्रेस के 208 और मुस्लिम लीग के 73 सदस्य इस सभा में चुनकर आ गए। संविधान सभा की पहली बैठक अखंड भारत में 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। जैसा कि अंदाजा लगाया जा सकता है मुस्लिम लीग को कांग्रेस और भारत का साथ रास नहीं आ रहा था तो उन्होंने अपने लिए अलग सभा बनाने की मांग शुरू कर दी। ये करीब करीब भारत की ब्रिटिश उपनिवेशवादियों से आजादी का दौर था। बंटवारे के बाद कई सदस्य भारत के नहीं रहे, उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा। ऐसे में भारत की संविधान सभा के लिए फिर से चुनाव हुए।

सन 1947 में 29 अगस्त को संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए सभा का गठन हुआ और डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर को इसका चेयरमैन बनाया गया। इस समिति ने 26 नवम्बर, 1949 को अपना काम पूरा कर लिया और इसी लिए 26 नवम्बर भारत में संविधान दिवस या नेशनल लॉ डे के रूप में मनाया जाता है। जब संविधान के हिंदी और अंग्रेजी दो संस्करणों पर 24 जनवरी 1950 को सदस्यों के हस्ताक्षर हुए तो संविधान निर्माण की प्रक्रिया को पूर्ण मान लिया गया। ये संविधान लिखित जरूर है, लेकिन ये कोई पत्थर की लकीर नहीं। समय समय पर इसमें परिवर्तन होते रहे हैं। जैसे जीवन का अधिकार जो अनुच्छेद 21 है, उसमें आगे चलकर त्वरित न्याय यानी तेज अदालती कारवाही के लिए, पानी का अधिकार, जीविकोपार्जन का अधिकार, स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार भी जोड़े गए हैं।

कहाँ से क्या आया ?

जैसा कि पहले जिक्र किया है, हमारे संविधान के कई हिस्से दुसरे देशों के संविधान से “उधार” लिए हुए हैं। सरकार का संसदीय ढांचा और नागरिकता के अधिकारों वाला हिस्सा ब्रिटेन के संविधान से लिया गया। मूलभूत अधिकार और केंद्र तथा राज्यों के बीच सत्ता के संतुलन वाले हिस्से कनाडा के संविधान से लिए गए। समानता, स्वतंत्रता, जैसे सिद्धांत फ़्रांसिसी संविधान से तो रुसी संविधान से मौलिक कर्त्तव्य और योजना आयोग जैसे हिस्से लिए गए हैं। सुधारे-बदले जा सकने वाले इस संविधान के बारे में ज्यादातर संविधान विशेषज्ञ इस बात पर एकमत होते हैं कि संविधान पर लगातार नजर बनाए रखना ही वो कीमत है जो जनता अपनी स्वतंत्रता के लिए चुकाती है।

जनता नजर रखना बंद करे तो हुक्मरानों के निरंकुश होने में कोई देर नहीं लगेगी। जैसे मामूली बच्चों के खेलों में भी नियम की जरूरत होती है वैसे ही देश के लिए संविधान की जरूरत होती है। नियम कायदे हटा कर जो अराजकता आती है उस से तो खेल भी नहीं चल सकता, देश कैसे चलेगा ? सत्ता के घोड़े को जिस लगाम के जरिये जनता अपने काबू में रखती है, संविधान उसी लगाम का नाम है। इस लिहाज से देखें तो एक बड़ी बहस जिसमें अक्सर संसद बड़ी या सुप्रीम कोर्ट, या पत्रकारिता बड़ी या कार्यपालिका पर टीवी बहसें दिखती हैं, वो ख़त्म हो जाती है। अगर संविधान वो ल

गाम है जिस से लोकतंत्र में सरकार काबू में रहती है और ये लगाम जनता के हाथ में है तो विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपलिका और पत्रकारिता चारों से ऊपर वो आम आदमी है जिसने ये लगाम उन्हें लगाईं है।

नयी दिल्ली में अपनी पहली बैठक ( 9 दिसम्बर, 1946) से लेकर अपनी आखरी बैठक (24 जनवरी, 1950

संविधान की मूल प्रति में सीता-राम और लक्ष्मण

) के बीच संविधान सभा के 11 सत्र चले और लोग 166 दिन बैठकों में शामिल हुए। इस सभा में बाबासाहेब रामजी आंबेडकर, सी. राजगोपालाचारी, नेहरु, के.एम. मुंशी, ए.कृष्णास्वामी अय्यर, मौलाना आजाद, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता मौजूद रहे। दक्षिण भारतीय होने के कारण शायद कांग्रेस ने कृष्णास्वामी अय्यर जैसों को या अलग विचारधारा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम आगे नहीं आने दिया। आज हम जो सोमनाथ मंदिर देखते हैं उसके निर्माण का श्रेय काफी हद तक के.एम.मुंशी को जाता है। नेहरु इस मंदिर के निर्माण के घनघोर विरोधी थे तो जाहिर है के.एम.मुंशी का नाम भी कम सुनाई देता है।

एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर इस सभा में फ्रैंक एन्थोनी थे। पारसियों का प्रतिनिधित्व एच.पी.मोदी और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए हरेन्द्र कुमार मुखर्जी थे जो एंग्लो-इंडियन के अलावा, दुसरे ई

साईयों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। गोरखा लोगों का प्रतिनिधित्व बहादुर गौरंग ने किया था। इस समिति में कई महिलाऐं भी थीं, जैसे सरोजनी नायडू, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर, और विजयलक्ष्मी पंडित। मुझे विश्वास है कि आज की पीढ़ी इनमें से ज्यादातर लोगों के बारे में अपनी स्कूल की किताबों में नहीं पढ़ती। संविधान में तो संशोधन के उपाय हैं ही, स्कूल के पाठ्यक्रम में संशोधन कर के इन्हें शामिल क्यों नहीं किया जाता ये हमें मालूम नहीं।

बाकि भारत का संविधान चूँकि विशाल है इसलिए उसके बारे में सब कुछ पढ़ना एक बार में संभव नहीं हो पाता। इस विषय पर एक अच्छी किताब दुर्गा दास बासु ने लिखी है, जो अक्सर आईएएस जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले पढ़ते हैं। आप चाहें तो वहां से भी देख सकते हैं।

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