वैश्विक तापमान के लक्ष्य में विकसित देशों की उदासीनता

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जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने पेरिस समझौते को अपनाया है। इस दिशा में सभी के सम्मलित प्रयास से पृथ्वी के बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक स्थिर करना है। भारत ने 2030 तक 30 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य तय किया है। एक ताजा रिपोर्ट में साफ हुआ है कि भारत ने इसके प्रभाव को 25 फीसदी कम करने मे सफलता प्राप्त की है। साथ ही नेशनल एक्शन प्लान फॉर क्लाइमेट चेंज के अंतर्गत विभिन्न मंत्रालयों में आठ अलग-अलग मिशन पर काम किया जा रहा है। भारत ने इस दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जताई है और गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की खपत में वृद्धि करने का संकल्प किया है। वर्ष 2030 तक भारत में स्थापित ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 40 प्रतिशत हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन से आएगा।

लॉसेंट काउंट डाउन-2018 की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में कार्बन निर्भरता को कम किए बिना जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचा नहीं जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा जा चुका है कि निम्न और मध्यम आय के देशों के 97 प्रतिशत प्रमुख शहरों में साफ हवा की गुणवत्ता बनाए रखने के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है। शोध में ये भी पता चला है कि पूरी दुनिया में हर साल करीब 30 लाख लोग असामयिक काल के गाल में समा जाते हैं।हाल ही के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि हमारे महासागर पांच वर्ष पूर्व के अनुमान के विपरीत 40 प्रतिशत अधिक तेजी से ग्लोबल वार्मिंग के चिह्न प्रदर्शित कर रहे हैं। वर्ष 2018 को चौथे सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। 1990 से 2016 के बीच भारत की एक तिहाई तटीय रेखा भूस्खलन का शिकार हो चुकी है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अध्ययन के अनुसार आज ऊर्जा उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को घटाने के लिए गैर-जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है। भारत सरकार ने इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता जतायी है लेकिन कामयाबी के लिए बड़े पैमाने पर गैर-जीवाश्म ईंधन की क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करना होगा। आईईईएफए का अनुमान है कि भारत एक दशक पहले ही 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा।

मार्च 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में थर्मल पावर क्षमता 226 गीगाबाट होगी जो देश की कुल 360 गीगावाट क्षमता का 63 प्रतिशत होगी। आईईईएफए का मानना है कि 2019 के अंत तक भारत गैर-जीवाश्म ईंधन के क्षेत्र में लगभग 40 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना कोई बड़ी बात नहीं रह जायेगी। अध्ययन से यह भी साफ हुआ है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग न हो रही होती तो देश इस समय 30 फीसदी अधिक अमीर होता। इस सबके बीच प्रश्न यह है कि तापमान की बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में विकसित देश क्यों उदासीन हैं? जबकि इस दिशा में वैश्विक स्तर पर पहल विकसित देशों को ही करनी चाहिए।

ग्लोबल वार्मिंग कि समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन की उपलब्धता अनिवार्य है। इसके लिए विकसित देशों को हरित कोष के लिए दी जाने वाली सहायता राशि में भी बढ़ोतरी करना चाहिए, लेकिन यहां पर भी विकासशील देशों को निराशा ही हाथ लगी है। हरित कोष की न्यायोचित राशि प्रदान करने से गरीब और विकासशील देश अपने लक्ष्य को समय रहते हासिल कर सकगेें। अतः हरित कोष में विकसित देशों की सहायता की विशेष दरकार है। कुछ दशक पहले 1992 में ब्राजील के शहर रियो-डी-जेनेरो में हुए पृथ्वी सम्मेलन में 172 राष्ट्रों ने एक मंच पर आकर तापमान वृद्धि और जैव विविधता के संरक्षण जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी विशेष प्रतिबद्धता दिखाई थी। बावजूद इसके आज वैश्विक स्तर पर विकसित देश अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण रूपेण निर्वाह करने में असमर्थ दिख रहे हैं।

आज दुनिया में कार्बन निर्भरता को कम करने की दरकार है। कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की चुनौती बरकरार है। कोयले के उपयोग से पैदा होने वाले बेहद महीन कणों की वजह से हुए प्रदूषण से दुनिया भर में करीब 16 प्रतिशत लोगों की मौत हो चुकी है। इसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की दरकार है। इस अहम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तकनीक की भी अहम भूमिका होगी। साथ ही विभिन्न सरकारी विभागों के बीच एक मंच तैयार किया जाना चाहिए, जिसमें नीति निर्माण हो और मूल्यांकन के साथ निर्णय लेने की भागीदारी भी होनी चाहिए। भारत को जलवायु परिवर्तन संबंधी पूर्वानुमान, प्रभावों का पूर्वानुमान और विश्लेषण करने की क्षमता विकसित करनी होगी, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते तबाही मचाने वाली आपदाओं के बादल मंडराते रहते हैं। जलवायु परिवर्तन हमारे समय की प्रतीक्षा नहीं कर रहा है। हमने उसके साथ कदम नहीं मिलाया तो इसका दुष्चक्र जनमानस पर काल के समान अपना दुष्प्रभाव अवश्य छोड़ेगा। इसकी झलक मिलनी भी शुरू हो गई है।

लाल जी जायसवाल

(लेखक छात्र हैं।)

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